“चिन्नी” कड़ी-०१

Read in English

“चिन्नी” मुखपृष्ठ

अगली कड़ी

Chinni-FeaturedPic सैमनगर पेनल्टी एरिया के बाहर से दाहिने पैर के एक अविश्वस्वसनीय शॉट से स्कोर बराबर करने के चार मिनट बाद बायीं छोर पर चिन्नी ने एक बार फिर गेंद को अपने कब्ज़े में किया. पर इस बार हीरा और रॉबिन कुछ ज़्यादा ही दूर थे, ऊपर से बुरी तरह कवर भी किये गए थे दोनों. दिमाग़ में आख़िरी गुज़रते पल ख़ुद अपनी गिनती करने लगे थे, और उसे पता था कि अगर रौनक गली की लाज रखनी है, तो उसे अकेले ही इन कमबख्त़ सैमनगरियों को चीरकर बढ़ना होगा. उनमें से एक ने आकर गेंद हथियाने की कोशिश की, पर उससे दुबककर वह आगे लांघ गयी, और अब्दू को कवर कर रहे बंदे पर जमके गेंद को दे मारा. वह हड़बड़ा गया, और उसके अटपटे बचाव से चिन्नी को जैसे एक सटीक क्रॉस मिल गया. बस फिर क्या था, उसने ऐसा कमाल का हैडर मारा कि आड़े आता सैमनगर कप्तान चकमा खा गया, और गेंद गोलकीपर के दाहिने हाथ से ज़रा सी दूरी से निकल गयी.

स्कोर को आगे बढ़ाने वाले गोल के दगते ही रैफ़री ने आख़िरी सीटी बजा दी. चिन्नी की टीम ने चार-तीन से जीत हासिल कर ली. उसके इलाक़े की इज्ज़त बनी रही.

स्टेडियम की लगभग ख़ाली क़तारों में एक पर से जसराज देवगढ़िया उछले, और इसकी तक परवाह किये बिना कि उन्होंने एक आलीशान बिज़नैस सूट पहन रखा है, अपनी दोनों तर्जनियों से अपनी जीभ को मोड़कर एक ऐसी ज़ोरदार सीटी बजायी कि जैसी रॉयलपुर जिले में पहले कभी न सुनी गयी हो.

मिनटों बाद स्टेडियम के पार्किंग लॉट की तरफ़ जाते हुए चिन्नी ने उनसे लिपट कर कहा, “थैंक यू सो मच, पापा!”

“कम ऑन, डार्लिंग! मैं जानता था ये गेम कितना मायने रखता है तुम्हारे लिए!”

“हँ?” वह चौंककर अलग हुई, पर चलती रही. “आपने ये तो नहीं सोचा कि मैंने अपना ये लोकल मैच देखने के लिए आपको बुलाया?!”

जसराज समझे नहीं. और क्या मतलब था उसका जो ऐसऐमऐस करके जल्दी यहाँ आने को कहा?

“पापा, क्या मैं नहीं जानती कि ऐनुअल रिपोर्ट लेकर आपके मेन डिस्ट्रीब्यूटर शहर आये हुए हैं? आपको लगता है अपने पिद्दी-से गेम के लिए आपको डिस्टर्ब करूंगी?”

“अच्छा, तो फिर किसलिए…?”

“अरे?” उसे यकीन नहीं हुआ कि वह पूछ भी रहे हैं.

अब तक वह अपनी सेडान तक पहुँच चुके थे. ड्राईवर से पहले वह ख़ुद ही दरवाज़ा खोलकर अन्दर घुसी. झट से सीट पर चढ़कर पीछे और हर जगह देखा. जब उसे वह नज़र नहीं आया जो वह ढूंढ रही थी, उतरकर बेसब्री से पापा को इशारा किया. है कहाँ?

जसराज ने कंधे उचकाकर हाथों से इशारा किया. क्या?

चिन्नी ने शरीर को तान लिया, गहरी सांस ली, स्लो मोशन में अपना सर पीछे की ओर घुमाया, आँखें बंद कीं, और धीरे धीरे सांस छोड़ी. फिर सीधे होकर आँखें खोलीं. उसके पापा अब भी बिना बात को समझे उसे ताके जा रहे थे.

तब उसने अपनी सूरत को पूरी तरह भावमुक्त किया, और धीमे से बोली, “मेरा लहंगा पापा!!”

***

शावर की टोंटी से गरमागरम पानी के फुहारे निकलकर चिन्नी के छोटे से बदन पर बहने लगे. थोड़ा थोड़ा करके थकान का दर्द जाने लगा.

ऊपरवाले का शुक्र था कि संजना आंटी ने कम से कम तीसरी बार में सिलाई सही कर दी थी. नहीं तो उसे वक़्त नहीं मिल पाता उनके पास फिर से जाने का, क्यूंकि ऑफिस में लहंगे की डिलीवरी लेकर समय बचाने की उसकी तरकीब पर तो पापा के भुलक्कड़पने ने पानी फेर दिया था.

अपनी सुडौल टांगों को टॉवैल से पोंछते हुए उसे ख़ुशी हुई कि उसने कल ही वैक्सिंग करवा ली थी. वर्ना सुबह वाले मैच के चक्कर में समय नहीं बचता.

दुपट्टे के फूशिया किनारों पर चांदी की ज़री वाली कढ़ाई शानदार लग रही थी. मशीन से सिले किनारों वाले गहरे जामुनी लाल रंग के सॉफ्ट-नैट लहंगे पर फूलों के विस्तृत आकार बने थे. उसने उसे नीची कमर की जीन्स पहनने वाली जगह पर बाँधा. चाहती तो थी कि और भी नीचे पहने, पर मौका पारिवारिक था, इसलिए इतने ही में काम चलाने की सोची.

पर इस सब से कहीं ज़्यादा उसे अपनी चोली पसंद आई थी. आख़िर में सही वाला कट मिल गया था – ऊपर से इतना नीचे कि छाती दिखा पाए, और नीचे से इतना ऊपर कि नाभि का प्रदर्शन भी हो. और तो और, चोली बैकलैस थी – बिकिनी स्टाईल वाली – इसलिए उसका ताज़ा गुदा टैटू भी साफ़ नज़र आ रहा था. हाँ, दिल पे हमलावर तीर का निशान तो हर कोई बनाता है. पर किसी कारण ही से तो ऐसा करते हैं सब.

***

रॉयलपुर सर्किट हाऊस में हो रहे सगाई समारोह की बॉलीवुड थीम ज़रूरत से कुछ ज़्यादा ही नाटकीय थी. यहाँ तक कि खाने के स्टॉल के नाम भी नई पुरानी घटिया हिट फ़िल्मों से प्रेरित थे. आख़िर आईडिया निशा चाची का जो था. हालांकि दूल्हे की माँ की इच्छा की ख़िलाफ़त करने का मन किसी को नहीं हुआ, फिर भी पापा ने हल्के से ज़िक्र ज़रूर किया था कि उन्हें यह सब तमाशा अच्छा नहीं लग रहा. इस पर बलराज चाचा ने वादा किया था कि ब्याह की रसम बिलकुल परम्परागत तरीक़े से ही होगी. पर उस वादे को निभाना भी मुश्किल मालूम हुआ जब दुल्हन का परिवार आ पहुंचा. फ़िल्मी अंदाज़ वाली सजावट से वह सब इतने उत्साहित हुए कि तय कर लिया कि जयपुर वाले शादी के फंक्शन में भी यही थीम दोहरायी जाएगी, वह भी और ज़्यादा ताम झाम से.

तालियों की गड़गड़ाहट के बीच सगाई वाले जोड़े यानी आँचल और सौरभ को दो सिंहासनों में कार्डबोर्ड के सितारों के बीच से नक़ली बादलों से भरे मंच पर उतारा गया. आम मापदंड के अनुसार दोनों दिखने में बेहद सुन्दर थे, और लग रहा था कि सच में एक दूसरे के ही लिए बने हैं.

संस्कार के बाद जब वर वधू मेहमानों से मिल कर बातें वगैरह करने लगे, तो चिन्नी को लगा कि जैसे दोनों के शांत, हँसमुख व्यक्तित्त्व एक दूसरे के प्रतिबिम्ब थे.

दूल्हे की पोशाक पूरी तरह से चिन्नी ने ख़ुद तय की थी. शुरू से ही सौरी भैया उसके सबसे चहीते चचेरे भाई थे. उनमें जैसे उसने अपना एक सगा भाई पा लिया था. उनसे छोटा ऋषभ अट्ठारह बरस का था, उससे बस दो ही साल छोटा, पर उसके बचकानेपन की वजह से वह उससे बात तक करना पसंद नहीं करती थी.

आंचल को परिवार के नए सदस्य के रूप में स्वागत करने के लिए वह बेहद उत्सुक थी. पांच साल पहले माँ के गुज़र जाने के बाद वह घर में लड़कियों वाली गपशप करने को तरस गयी थी. हाँ, निशा चाची थीं, पर उसके टाईप की नहीं थीं. वैसे आँचल भी पूरी तरह उसके जैसी नहीं थी – बहुत कम लड़कियाँ होती हैं फ़ुटबॉल में दिलचस्पी रखने वाली, खेलना तो दूर की बात है. पर आँचल ने फैशन डिज़ाईनिंग कर रखी थी, थी न कमाल की बात!

आने वाले दिनों में आँचल के साथ बढ़िया समय बिताने के बारे में सोचती हुई भी उसकी नज़रें चारों तरफ़ घूम रही थीं, जगह का विस्तार से निरीक्षण कर रही थीं. वहां पर आया कोई भी बंदा नहीं भाया था उसे अब तक. वैसे भी सब परिवार वाले और जाने पहचाने लोग ही थे, दुल्हन की ओर के ज़्यादातर मेहमानों से भी परिचित थी वह – आखिर कारोबार के साथियों की मदद से ही यह रिश्ता तय हुआ था.

अचानक उसकी सांस गले में ही अटक गयी. लोगों की जमघट के बीच, एक झाड़-फानूस की रोशनी में एक बेहद रूपवान चेहरा दमक रहा था.

उसके पेट में गुदगुदी सी महसूस हुई. इससे पहले कि वह इस बारे में कुछ सोच ही पाती, उसका एक हाथ अनायास ही उठा और उसकी उंगलियाँ होठों को सहलाने लगीं.

“ये रही!” पापा की आवाज़ ने उसकी सोच को उभरने से पहले ही तोड़ दिया. वह बड़ी ख़ुशी ख़ुशी एक मेहमान को लेकर आ रहे थे. “चिन्नी, बेटा, ये मेरे बड़े पुराने मित्र हैं, बंसल साहब.”

चिन्नी ने अदब से नमस्ते किया, और पूरी इज्ज़त से ध्यान देने का नाटक किया जब जसराज उसकी ख़ूबियाँ गिनाकर तारीफ़ों के पुल बाँधने लगे. एक नंबर की फ़ुटबॉलर. पूरे जिले में बारहवीं की टॉपर. फिलहाल बिज़नैस मैनेजमैंट में ग्रैजुएशन कर रही है, वगैरह.

पर उसका पूरा ध्यान हॉल की दूसरी तरफ़ खड़े उस बन्दे पर था. अब वह उसे कुछ बेहतर ढंग से नज़र भी आ रहा था. गॉड! घने, बेलगाम, घुंघराले काले बाल. तीखी भूरी आँखें. क़रीब छ: फुट ऊंचा. उस मयूरपंखी नीली शेरवानी में क़ैद उसके गठीले जिस्म का अंदाज़ा लगाने लगी वह.

बंसल साहब का मोबाईल बजा तो वह इजाज़त लेकर उसपर बात करने लगे. जसराज देवगढ़िया मन ही मन मुस्कुराए. वह समझ गए थे कि यह सज्जन चिन्नी से काफ़ी प्रभावित हुए हैं. बड़ा शुभ था यह संकेत. उनका इकलौता बेटा हार्वर्ड की पढ़ाई करके एकाध साल में वापस आनेवाला था. कमाल की जोड़ी होगी यह. भतीजे सौरभ के होने वाले ससुराल से कहीं ज्यादा धाक थी बंसल परिवार की.

ऐसा ही एक रिश्ता उन्हें अपने खानदानी कारोबार पर राज करते रहने की गारंटी दे सकता था.

उनके कोई बेटा तो था नहीं आख़िर.

अगली कड़ी

“चिन्नी” मुखपृष्ठ

Read in English


5 thoughts on ““चिन्नी” कड़ी-०१

Leave a comment